Electoral Bonds Scam: आजाद भारत के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला

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Electoral Bonds Scam: क्या आपका पैसा चोरी हो गया है, देश के सभी पब्लिक का पैसा लूट लिया गया है, शायद आजाद भारत के इतिहास का सबसे बड़ा स्कैम (घोटाला) के बारे में क्या आपको पता है? आपको यह पढ़ने में लग रहा होगा कि शायद हम चीजो को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहा हूँ, किंतु ऐसा बिल्कुल नही है। तथ्य यह कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कैम (Electoral Bonds Scam) कोई एक घोटाला नही है, बल्कि एक घोटालो भंडार है। घोटालों की इतनी लम्बी लिस्ट है कि आप गिनते-गिनते थक जायेंगे और इतना ही नही शायद यह देश का सबसे बड़ा ज़बरदस्ती वसूली का रैकेट (Extortion racket) भी है।

आइये आज के इस पोस्ट में समझते है कि वास्तव में इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कैम (Electoral Bonds Scam) क्या है? ,और वास्तव में इसमें क्या हुआ है।

Electoral Bonds Scam: चुनावी बॉन्ड घोटाला

चुनावी बॉन्ड घोटाला (Electoral Bonds Scam) के बारें में जानने से पहले यह समझ लेना आवश्यक है कि चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) क्या होता है, जिससे इस पूरे घटनाक्रम को जानने में आसानी होगी।

Electoral Bonds (चुनावी बॉन्ड )

राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ने और पार्टी गतिविधियों को चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है। पार्टियों को यह धन मुख्य रूप से चंदे के रूप में प्राप्त होता है। यह चंदा कोई भी व्यक्ति/संगटन/ कम्पनी द्वारा किसी भी पार्टी को दिया जा सकता है। लेकिन पार्टियों को चंदा देने की पारंपरिक प्रणाली में अस्पष्टता थी और इसमें काले धन के इस्तेमाल की आशंका भी रहती थी। इसी समस्या को दूर करने के लिए भारत सरकार ने 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड्स (Electoral Bonds) की शुरुआत की थी।

इलेक्टोरल बॉन्ड एक तरह का बैंक गारंटी पत्र होता है, जिसे भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की विशिष्ट शाखाओं से खरीदा जा सकता है। ये बॉन्ड 1000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के मूल्य में उपलब्ध होते हैं। कोई भी भारतीय कंपनी या व्यक्ति इन बॉन्ड्स को खरीद सकता है, लेकिन विदेशी कंपनियों और विदेशी लोगों को इसकी इजाजत नहीं है। ख़रीदे गए बॉन्ड को किसी भी राजनीतिक दल को दान दिया जा सकता है, जिसे निर्धारित समयावधि के अंदर उस दल के अधिकृत बैंक खाते में जमा करना होता है। जमा होने के बाद, बैंक उस राशि को राजनीतिक दल को दे देता है।

Electoral Bonds (चुनावी बॉन्ड ) की विशिष्ठ विशेषताएं

इलेक्टोरल बॉन्ड्स की खास बात यह कि इस स्कीम में सारी चीज जनता से छिपा कर करी जाती है। कोई व्यक्ति या कम्पनी किस पार्टी को कितना पैसा देगा , इसका कुछ भी पता नही चलना था। सन 2017 में जब यह स्कीम लागू की गयी थी तभी इस बात का अन्देशा था कि इसनें बहुत बढ़ा घोटाला हो सकता है।

Electoral Bonds से जुड़े विवाद

  • इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले दानकर्ता की जानकारी गोपनीय रहती है। इससे यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि राजनीतिक दलों को कौन फंडिंग कर रहा है। यह पारदर्शिता के सिद्धांत का उल्लंघन माना जाता है।
  • विपक्ष का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड काले धन को चुनाव में आने से रोकने में सक्षम नहीं है। बॉन्ड खरीदने वाला कोई भी व्यक्ति या कंपनी किसी और को पैसे देकर बॉन्ड खरीदवा सकता है, जिससे असल दानकर्ता की पहचान छिपी रहती है।
  • चुनाव लड़ने के लिए बड़े धन की आवश्यकता होती है। इलेक्टोरल बॉन्ड का फायदा ज्यादातर बड़ी पार्टियों को ही मिलता है, जो बड़े कॉरपोरेट से फंड जुटा पाने में सक्षम होती हैं। इससे छोटे दलों के लिए चुनाव लड़ना और जीतना और मुश्किल हो जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों असंवैधानिक घोषित किया

भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, सर्वोच्च न्यायालय ने 15 फरवरी, 2024 को इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया। चुनावी बॉन्ड को जहां कुछ लोग राजनीतिक दान को पारदर्शी बनाने का एक सुरक्षित साधन मानते थे, वहीं दूसरी तरफ इसे भारतीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा घोटाला भी कहा जाता रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस योजना को कई कारणों से असंवैधानिक बताया-

  • सर्वोच्च न्यायालय ने इस योजना को असंवैधानिक इसलिए माना क्योंकि यह पारदर्शिता के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
  • अदालत ने यह भी माना कि यह योजना राजनीतिक दलों को असमान लाभ प्रदान करती है क्योंकि केवल धनी कंपनियां ही बड़े मूल्य के बॉन्ड खरीद सकती थीं।
  • अदालत ने माना कि यह योजना बड़े कॉरपोरेट घरानों को अनुचित लाभ पहुंचाती है, जो गुमनाम दान के जरिए राजनीतिक दलों पर अपना प्रभाव जमा सकते हैं।

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सरकार द्वारा तथ्य छिपाया गया

गृहमंत्री ने कहा कि कुल 20 हजार करोड़ चंदा में से BJP को 6 हजार करोड़ मिले बाकी 14 हजार करोड विपक्ष को गये । किंतु ECI डाटा के अनुसार अप्रैल 2019 से जनवरी 2024 तक कुल 12700 करोड चंदा कैश किये गये है, जिसमें भाजपा को 6000 करोड (47.5% ) मिले,तृणमुल कांग्रेस को 1600 करोड़ (12.6%) और कांगेस को 1400 करोड़ (11.1%) और शेष में अन्य पार्टीयां थी।

अब आपको यहां लगता होगा कि चंदा मिलना या लेना कोई घोटाला कैसे हो सकता है। जी हां चंदा लेना या चंदा देना अपने आप में कोई स्कैम नही है। किसी भी राजनितिक पार्टी को कोई भी डोनेशन(चंदा) दे सकता है, यह कोई घोटाला नही है। लेकिन जो व्यक्ति या कम्पनी चंदा देता/देती है उसके बदले अगर उस व्यक्ति/कम्पनी को कोई कांट्रैक्ट (ठेका) या कोई फायदा दिया जाता है और जो चंदा नही देता है उसे ED का फंदा दिया जाता है तो यह स्कैम या घोटाला हुआ। डरा धमकाकर जबरन चंदा लिया जाता है तो यह घोटाला हुआ। Electoral Bonds Scam में यही हुआ।

एक पत्रकार पूनम अग्रवाल ने 5 और 9 अप्रैल 2019 को एक-एक हजार रुपये के दो इलेक्टोरल बाण्ड खरीदी। इन दोनो बाण्ड में तारीख के अलावा कोई अंतर नही था। जब पूनम अग्रवाल ने एक बाण्ड को फोरेंसिक टेस्ट के लिये भेजा तो पता चला कि हर बाण्ड में एक सिक्रेट यूनिक अल्फान्यूमेरिक नंबर लिखा हुआ है। इस सिक्रेट नंबर को सिर्फ अल्ट्रावायलेट लाईट के नीचे ही देखा और पढ़ा जा सकता है। इस सम्बंध में सरकार और बैंक ने कहा कि सुरक्षा उद्देश्य से यह सिक्रेट नंबर अंकित है।

इसका मतलब यह हुआ कि इस सिक्रेट नंबर के जरिये सत्ताधारी पक्ष (सरकार),ED और CBI को यह पता लग सकता था कि किस कम्पनी ने किसको कितना चंदा दिया है। जबकि बाण्ड की पालिसी में यह था कि किसी को कुछ पता नही चलना है।

इलेक्टोरल बाण्ड घोटाला (Electoral Bonds Scam) कैसे हुआ

आइये कि पार्टीयों मिलने वाला यह चंदा घोटाला कैसे हुआ – Electoral Bonds Scam मुख्य रुप से दो तरीके से हुआ-

  • कम्पनीयों द्वारा अपने फायदे के लिये सत्ताधारी पक्ष अर्थात सरकार को चंदा देना। अर्थात धंधे के लालच में कम्पनीयो द्वारा सत्ताधारी पक्ष को अधिक चंदा मिलना।
  • यदि कोई कम्पनी टैक्स की चोरी करती है, सरकार उससे टैक्स न वसूलकर अपने पार्टी के लिये चंदा लेकर चुप हो जाती है।

अमीरो से धन लूटकर गरीबों में बाँटने वाली कहानी आपने जरुर सुना होगा, किंतु Electoral Bonds Scam में यहां गरीबो से पैसा लूटकर अमीरो में बाटा गया।

समापन (Conclusion)

निष्कर्ष के तौर पर, यह कहा जा सकता है कि इलेक्टोरल बॉन्ड चुनाव आयोग को पारदर्शिता बनाए रखने और दानों को ट्रैक करने में कुछ हद तक मदद करते हैं। हालांकि, गुमनाम दान की व्यवस्था भ्रष्टाचार की आशंकाओं को जन्म देती है। चुनावी प्रक्रिया में धन के प्रभाव को कम करने के लिए दीर्घकालिक समाधानों की आवश्यकता है। इसमें राजनीतिक दलों को सार्वजनिक धन अनुदान देना, चुनाव खर्च की सीमा को सख्ती से लागू करना और चुनाव प्रचार के लिए मीडिया खर्च को विनियमित करना शामिल हो सकता है। पारदर्शिता बढ़ाने के लिए, चुनाव आयोग को यह अनिवार्य करना चाहिए कि पार्टियां यह घोषित करें कि उन्हें प्राप्त इलेक्टोरल बॉन्ड का इस्तेमाल कैसे किया गया।

सामान्य प्रश्नोत्तर (FAQs)

इलेक्टोरल बॉन्ड्स (Electoral Bonds) की शुरुवार कब की गयी?

2017 में की गयी।

Electoral Bonds Scam क्या है?

चुनावी बाँड स्कैम (Electoral Bonds Scam) एक विवादास्पद विषय है जो भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय बन चुका है। इसमें चुनाव के समय पार्टियों को अनाम चंदा देने के लिए इस्तेमाल होने वाले चुनावी बाँड का विवाद उठा है। इसमें कुछ लोग इसे चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता को कमजोर करने का तरीका मानते हैं। यह एक विवादास्पद मुद्दा है जो भारतीय राजनीति में गहरे रूप से उठा है।

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